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आत्मा

आत्मा[1] एक है, फिर भी वह हर जगह एक सामान नहीं है । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ब्रह्मन से परिपूर्ण है, जो अलग अलग स्थानों में अलग इकाइयों में व्याप्त है ।

इकाई तत्त्व विवरण
पृथ्वी पत्थरों में जीवन है और उनका लिंग होता है । कुछ नर और कुछ मादा पत्थर होते हैं ।
जल जल अधिक स्वच्छंद है और वह स्वतंत्र रूप से दो आयामों में घूम सकता है ।
अग्नि अग्नि कुछ हद तक तीसरे आयाम में भी जाने के लिए स्वतंत्र है ।
वायु वायु तीनों आयामों में विचरण करने के लिए स्वछंद है ।
आकाश आकाश वह स्थान है जिसमें बाकी सभी तत्त्व विद्यमान हैं । इनके अतिरिक्त इसमें समय भी शामिल है ।
वनस्पति सृष्टि के विकास में वनस्पति प्रारंभिक प्राणशक्ति युक्त जीवन है । इनकी सीखने की शक्ति और स्मृति जैव रासायन पर आधारित है ।
पशु इनमें सभी जलीय, उभयचर, हवाई, और स्थलीय जानवर शामिल हैं । इनका विकास मन पर आधारति है ।
मानव मानव प्रथम बुद्धिजीवी प्राणी है । बुद्धि के अतिरिक्त इसकी स्मरण शक्ति भी बहुत विकसित है ।
अतिमानव जो लोग असाधारण काम करते हैं । ये सकारात्मक या नकारात्मक दोनों श्रेणियों में हो सकते हैं ।
१० पितृ विभिन्न संस्कृतियों में लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं । कुछ संस्कृतियों में आत्माओं का सम्मान किया जाता है और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं । हमारे पूर्वज हमसे एक कदम और शक्तिशाली होते हैं । संस्कृत में इन्हें पितृ कहा जाता है ।
११ किन्नर कुछ जीवात्माएँ पित्रों से एक श्रेणी ऊंची हैं । वे किन्नर कहलाती हैं । किन्नर वे आत्माएं हैं जो बड़े सामाजिक कार्यों में सलंग्न व्यक्तियों या राजनीतिक नेताओं के पीछे होतें हैं ।
१२ गंधर्व इसके बाद गंधर्व आत्माएं आती हैं, जो हर सफल कलाकार के पीछे होती हैं । गंधर्व आपको बहुत प्रसिद्धि दिलाता है । हालाँकि वे लोगों के लिए खुशी लाते हैं, लेकिन वे व्यक्ति को बहुत दुखी करते हैं । आप इतिहास खोलकर विख्यात कलाकारों को देखिए, इन सभी में आपको यह स्पष्ट देखने को मिलेगा । केवल वही कलाकार खुश थे जिन्हें रास्ता मिल गया था, जिनके पास गुरु था । अन्यथा वे प्रसिद्ध होंगे और दूसरों को आनंदित करेंगे, लेकिन अपने निजी जीवन में वे दयनीय होंगे । इनका एक उदाहरण हैं श्री राम ।
१३ यक्ष गंधर्व आत्माओं से अगला स्तर यक्ष है । एक यक्ष बहुत धन लाता है । इसलिए, बहुत धनवान लोगों पर यक्षों की कृपा होती है । यक्ष विश्राम दे सकते हैं, लेकिन वे संतान से सुख नहीं देते हैं । यक्षों से धन्य लोग अपने बच्चों के व्यवहार से संतुष्ट नहीं रहते हैं । वो उनके दुःख का कारण बनते हैं । यदि वे एक पीढ़ी में सुखी रहते हैं, तो निश्चित रूप से अगली पीढ़ी में ऐसा नहीं होता है । तीन पीढ़ियों के भीतर वे दयनीय हो जाते हैं । परन्तु यदि वे आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं, तो इससे बचा जा सकता है ।
१४ देवता यक्षों से एक स्तर ऊपर देवता हैं । देवता ३३ प्रकार के होते हैं और हमारा यह शरीर देवों द्वारा संचालित होता है । यह देखेंने योग्य है कि एक कोशिका खुद को विभाजित करती है और एक संपूर्ण मानव शरीर बन जाती है । कहीं आँख बन जाती है, कहीं कान बन जाती है, कहीं नाक बन जाती है, तो कहीं बाल बन जाते हैं, और कहीं हड्डी । संपूर्ण ब्रह्मांड देवों के नियंत्रण में है । यह ईश्वर नहीं बल्कि देवी-देवता हैं, देवत्व का एक पहलू । इनका एक उदाहरण हैं श्री हनुमान ।
१५, १६ सिद्ध सिद्ध या प्रबुद्ध जीव एक मुक्त प्राणी है, जिसके पास अन्य प्राणियों को भी मुक्त करने की शक्ति है । वह स्व-साक्षात्कार मुक्त आत्मा है और वह अनगिनत अन्य आत्माओं को मुक्त करने में सक्षम है । उसके लिए, 'बनने' का चरण समाप्त हो गया है । वह 'होने' की सर्वोच्च अवस्था में है । इनका एक उदाहरण हैं श्री कृष्णा जो १६ कलाओं के धनी थे ।

संदर्भ

  1. YouTube, Gurudev Sri Sri Ravi Shankar. These Unseen Beings. https://www.youtube.com/watch?v=LrxCPXbH8b0