cKlear
Swara

स्वर वर्णमाला

संस्कृत स्वरों की ध्वनि स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है । इनके लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता है ।

सामान्य स्वर

संस्कृत में की ध्वनि कंठ (१) से, तालु (२) से, और ओष्ठ (३) से उत्पन्न होती है । इनमें , , और क्रमशः , , और के दीर्घ रूप है । यद्यपि और का उपयोग अब नहीं होता, पर संस्कृत व्याकरण में इन्हे स्वर ही माना गया है ।

स्थान 1 2 3 4 5
ह्रस्वा
दीर्घ

मिश्रित स्वर

की ध्वनि और स्वरों को एक साथ बोलने से उत्पन्न होती है । की धवनि और को तुरंत एक के बाद एक बोलने पर उत्पन्न होती है । इसी प्रकार और की ध्वनियाँ और से उत्पन्न होती हैं ।

स्थान 1 & 2 1 & 3 अयोगवाह
ह्रस्वा अं
दीर्घ अः
Vyanjana

व्यंजन वर्णमाला

उस ध्वनि को व्यंजन कहते हैं जिसका उच्चारण करने के लिए किसी स्वर की आवश्यकता होती है । व्यंजनों का उच्चारण करते समय हमारी जीभ मुंह के किसी ना किसी हिस्से से किंचित् रगड़ती है । वायु के मार्ग में तालू और मुंह के अन्य भाग कहीं न कहीं बाधा डालते हैं, जो स्वरों के मामले में नहीं होता है ।

वर्गीय व्यंजन

संस्कृत में वर्ग की धवनि कंठ (१) से, वर्ग की तालु (२) से, वर्ग की मूर्धा (३) से, वर्ग की दन्त (४) से, और वर्ग की ओष्ठ (५ ) से आती है । अल्प प्राण शब्दों के उच्चारण के लिए थोड़ी हवा, महा प्राण में अधिक हवा, और अनुनासिका में नॉक (६) का प्रयोग होता है ।

स्थान कठोर मृदु
अल्प प्राण महा प्राण अल्प प्राण महा प्राण अनुनासिका
1 कण्ठ्य क् ख् ग् घ् ङ्
2 तालव्य च् छ् ज् झ् ञ्
3 मूर्धन्य ट् ठ् ड् ढ् ण्
4 दन्त्य त् थ् द् ध् न्
5 ओष्ठ्य प् फ् ब् भ् म्

अवर्गीय व्यंजन

अन्तस्थ स्वरों से बने हुए व्यंजन हैं । ये व्यंजन तो हैं, लेकिन स्वर और व्यंजनों के बीच रहते हैं । य् बना है से । स्वर र् का मूल है । ल् व्यंजन बनता है स्वर से । व् व्यंजन का मूल स्वर है । अवर्गीय व्यंजनों में एक और प्रकार होता है, उष्म व्यंजन, इनमें चार व्यंजन होते हैं । उष्मों में से – श्, ष्, और स् कठोर हैं । बाकी बचा मृदु है ।

अंतस्थाः य् र् ल् व्
उष्मणः श् ष् स्