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षड्दर्शन

भारतीय सभ्यता में दर्शन[1] शब्द का अर्थ दृष्टि या देखना है, जो अनुभव या अनुभूति पर आधारित है । यह दर्शन की पश्चिमी परिभाषा से काफी अलग है, जो परिकल्पना पर आधारित है ।

भारतीय दर्शन वेदों का अभिन्न अंग हैं । वेद, प्राचीन भारत वर्ष के पवित्र साहित्य हैं जो धरती के प्राचीनतम और आधारभूत ग्रन्थ हैं । वेद, विश्व के सबसे प्राचीन साहित्य भी हैं । भारतीय संस्कृति में वेद सनातन एवं वर्णाश्रम धर्म के मूल ग्रन्थ भी हैं । वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (छह दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं । ये छः दर्शन हैं - न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, और वेदान्त । मूलतः यह सत्य और ज्ञान को देखने के छह आयाम हैं ।

लगभग ३०,००० वर्ष पूर्व मानवों ने बस्तियों में रहना प्रारम्भ कर दिया था । शंकर ने इन विकसित हो रहे समाजों की जटिलताओं को देखा और कुछ पहलुओं को परिभाषित करने की आवश्यकता को महसूस किया, जो एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकें । उन्होंने इन ज्ञान सूत्रों को विभिन्न ऋषियों को हस्तांतरित किया, जिन्होंने इसे षड्दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया । यह ज्ञान बाद में ऋषि वेदव्यास द्वारा रचित वेदों का हिस्सा बने, जिनसे वैदिक काल की शुरुआत हुई । इसलिए षड्दर्शन को पूर्व वैदिक कालीन भी कहा जा सकता है ।

न्याय

महर्षि गौतम द्वारा रचित इस दर्शन में न्याय करने की पद्धति तथा उसमें जय-पराजय के कारणों का स्पष्ट निर्देश दिया गया है । मनुष्यों में बुद्धि के विकास को तीव्र करने के लिए इसमें तर्कशास्त्र का विस्तार से वर्णन भी किया गया है ।

वैशेषिक

महर्षि कणाद रचित इस दर्शन में सांसारिक उन्नति तथा निश्श्रेय सिद्धि के साधन को धर्म माना गया है । इसमें कहा गया है कि द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, और समवाय इन छ: पदाथों के साधर्म्य तथा वैधर्म्य के अभ्यास से मोक्ष प्राप्ति की जा सकती है ।

सांख्य

इस दर्शन के रचयिता महर्षि कपिल हैं । सांख्य दर्शन प्रकृति से सृष्टि रचना और संहार के क्रम को विशेष रूप से मानता है । साथ ही इसमें प्रकृति के परम सूक्ष्म कारण तथा उसके सहित २४ कार्य पदार्थों का स्पष्ट वर्णन किया गया है । पुरुष २५ वां तत्व माना गया है । इस प्रकार प्रकृति समस्त कार्य पदार्थों का कारण है । पुरुष चेतन तत्व है, जो प्रकृति का भोक्ता है ।

योग

इस दर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि हैं । इसमें जीव के बंधनों के कारण, चित्त की वृत्तियां, और योग द्वारा इनके नियंत्रण के उपायों का विस्तृत वर्णन किया गया है । जहाँ एक तरफ सांख्य दर्शन सत्य को पुरुष और प्रकर्ति में विभाजित करता है, वहीँ योग उन्हें एक ही सत्य के दो पहलुओं के रूप में देखता है ।

मीमांसा

मीमांसासूत्र इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है जिसके रचयिता महर्षि जैमिनि हैं । इस दर्शन में वैदिक यज्ञों में मंत्रों का विनियोग तथा यज्ञों की प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है । यदि योग दर्शन अंतःकरण शुद्धि का उपाय बताता है, तो मीमांसा दर्शन मानव के पारिवारिक जीवन से राष्ट्रीय जीवन तक के कर्तव्यों और अकर्तव्यों का वर्णन करता है, जिससे समस्त राष्ट्र की उन्नति हो सके ।

वेदान्त

वेदान्त का अर्थ है जहाँ ज्ञान का अंत हो जाये । महर्षि व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रन्थ है । इस दर्शन के अनुसार ब्रह्म जगत का कर्ता-धर्ता व संहारकर्ता होने से जगत का निमित्त कारण है । इस दर्शन के अनुसार जीवात्मा हमेशा ही अपने दुखों से मुक्ति का उपाय करती रही है । इस दर्शन का मूल सिद्धांत है कि जब हम ज्ञान के परे जाते हैं तभी हम उस ब्रह्म को जान सकते हैं ।


संदर्भ

  1. Wikipedia, The Free Encyclopedia. भारतीय दर्शन. https://hi.wikipedia.org/wiki/भारतीय_दर्शन