आर्य सभ्यता
इस युग की शुरुआत के आसपास आर्यावर्त से आर्य भारत की ओर अग्रसर हुए । आर्य ज्यादातर खोजकर्ता और योद्धा थे । वे भगवान विष्णु के महान अनुयायी थे । उन्होंने भारत को बहुत उपजाऊ पाया और सिंधु घाटी के पास बसने लगे । इस अवधि के अधिकांश भाग में द्रविड़ और आर्य संस्कृतियों के बीच संघर्ष का वर्णन है ।
द्रविड़-आर्य संघर्ष
वैदिक सन्दर्भ में दैत्य का अर्थ है कश्यप की पत्नी दिति से उत्पन्न पुत्र । आर्य स्वयं को अत्यंत विकसित और सुसंस्कृत व्यक्ति मानते थे । द्रविड़ों के साथ संघर्षों में उन्होंने दैत्य शब्द का उल्लेख एक राक्षस प्रवृति के व्यक्ति के रूप में करना शरू कर दिया । एसा व्यक्ति जो नीच, दुराचारी, अमानवीय, बड़े डील-डौल वाला, लंबा-चौड़ा बलिष्ठ, और कुरूप व्यक्ति है ।
आदिकालीन युग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन अवतार हुए जो कि सभी अमानवीय थे । इस युग में शंखासुर का वध एवं वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख देने के लिए यह अवतार हुए थे । यदि हम इसे विकासवादी दृष्टिकोण से देखें, तो पहला अवतार मत्स्य (मछली) पानी में जीवन की शुरुआत को दर्शाता है । कूर्म अवतार (कछुआ) उभयचर जीवन को दर्शाता है । वराह अवतार (सूअर) भूमि पर जीवन का प्रतिनिधित्व करता है । नरसिंह अवतार आधे जानवर और आधे मानव का सूचक है । और वामन (बौना) शुरुवाती मनुष्यों को इंगित करता है ।
सूर्य की पृथ्वी से दूरी
पंचविंश ब्राह्मण[1] शीतकालीन संक्रांति को मृगशिरा से रोहिणी की ओर स्थानांतरित होने का संकेत देता है । यह घटना लगभग १०,२०० BCE में घटित हुई थी । पंचविंश सपष्ट रूप से सरस्वती के प्रवाह में परिवर्तन का उल्लेख भी करता है । इसमें कहा गया है कि सरस्वती पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगीं । आई. आई. टी. कानपुर और इंपीरियल कॉलेज, लंदन द्वारा किए गए शोध से यह निष्कर्ष निकला है कि सरस्वती नदी लगभग १०००० - ८००० BCE के दौरान सूख गई होगी और उसने दिशा परिवर्तित की होगी । यह सदियों पुरानी मान्यता को ध्वस्त कर देता है जिसमें माना गया था कि सरस्वती नदी का लुप्त होना, जो लगभग ९००० BCE में हुआ था, हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण बना, जो लगभग २००० BCE में था ।
पंचविंश ब्राह्मण इंगित करता है कि स्वर्ग पृथ्वी से लगभग १००० पृथ्वी व्यास की दूरी पर है । सूर्य इसकी आधी दूरी पर है, जो कि ५०० पृथ्वी व्यास है । दूसरी शताब्दी में, ग्रीक खगोलशास्त्री टॉलेमी ने घोषणा की कि ब्रह्मांड भूकेंद्रित है और सूर्य की दूरी ६०० पृथ्वी व्यास है । आज हम जानते हैं कि सूर्य की दूरी ११,५६० पृथ्वी व्यास है, जो उस समय के अनुमान से बहुत अलग है । लेकिन यह उल्लेखनीय है कि तत्कालीन ऋषियों को पता था कि पृथ्वी गोल है और वे सूर्य की दूरी का अनुमान लगाने के बारे में सोचते थे ।
राजा इश्वाकु
जैमिनीय ब्राह्मण, जैमिनीय उपनिषद, और केनोपनिषद (९००० BCE), चंदोग्य ब्राह्मण और उपनिषद (८६०० BCE ), सामविधान ब्राह्मण (७५०० - ७००० BCE), और वंश ब्राह्मण (६८५० BCE) में इस अवधि के दौरान भारतीय इतिहास के कालक्रम का विस्तृत विवरण किया है ।
राजा इश्वाकु राम के पूर्वज थे, जिन्होंने अयोध्या में कौशल राज्य की स्थापना की थी ।
भारत का कालक्रम
परंपरागत रूप से, लगभग १४००० BCE से, देवों, ऋषियों और राजाओं की वंशावली को संरक्षित करना सूतों और मगधों का कर्तव्य था । इन पुस्तकों की विस्तृत सूची के लिए, आप भारत के कालक्रम - मनु से महाभारत तक[2] का संदर्भ ले सकते हैं । इनके अलावा और भी कई ब्राह्मण ग्रंथ थे जो प्राचीन काल में मौजूद थे लेकिन आज उपलब्ध नहीं हैं ।
संदर्भ
- The Chronology of India, Vedveer Arya. Manu to Mahabharata, Page 145. https://dokumen.pub/the-chronology-of-india-from-manu-to-mahabharata
- The Chronology of India, Vedveer Arya. Manu to Mahabharata, Chapter 4. https://dokumen.pub/the-chronology-of-india-from-manu-to-mahabharata