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सप्तऋषि

ब्रह्मा प्रथम (१४५०० BCE) सबसे पहले ऋषि थे जिन्होंने वैदिक विज्ञान में अनुसंधान की नींव रखी थी । सप्तर्षि[2] ब्रह्मा के वंशज थे, शिव भक्त थे, और आदियोगी शंकर[1] के शिष्य थे । शंकर ने इन सात ऋषियों में से प्रत्येक को योग के विभिन्न पहलुओं की शिक्षा दी, जिसे हम दर्शनशास्त्र के रूप में जानते हैं । सप्तर्षियों को इन आयामों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लेजाने के लिए सात अलग-अलग दिशाओं में भेजा गया । समय ने इस ज्ञान में कई बदलाव किए, लेकिन अगर हम विभिन्न देशों की संस्कृतियों को ध्यान से देखें , तो इन ज्ञान सूत्रों की झलक आज भी देखाी जा सकती है ।

ऋग्वैदिक अनुक्रमणियों के अनुसार १६० से अधिक ऋषियों ने उसके सूक्तों की रचना की । इनमें सप्तऋषियों की भूमिका प्रमुख थी ।

ऋषि अंगिरस

ऋषि अंगिरस[3] १४००० BCE के आसपास हुए थे । वे ब्रह्मा के मानसपुत्र थे और स्वायंभुव मनु के समकालीन थे । अथर्वा और अंगिरस ने संयुक्त रूप से अथर्ववेद की रचना की । इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है । सम्पूर्ण ऋग्वेद में महर्षि अंगिरस तथा उनके वंशधरों तथा शिष्य-प्रशिष्यों का जितना उल्लेख है, उतना अन्य किसी ऋषि के सम्बन्ध में नहीं हैं। ।

ऋषि गौतम

ऋषि गौतम[4] १३५५० BCE के आसपास हुए थे । वह अथर्व अंगिरस के पुत्र थे । उन्होंने न्याय शाश्त्र की रचना की । इसमें जय-पराजय के कारणों का स्पष्ट निर्देश दिया गया है । मनुष्यों में बुद्धि के विकास को तीव्र करने के लिए इसमें तर्कशास्त्र का विस्तार से वर्णन भी किया गया है ।

ऋषि अत्रि

ऋषि अत्रि[5] ब्रम्हा जी के मानस पुत्रों में से एक थे । वे ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा थे । उन्होंने कृषि के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया था । अत्रि के वंशज सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया । अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ ।

ऋषि कपिल

ऋषि कपिल[6] सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं । कपिल ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा । कपिलस्मृति उनका धर्मशास्त्र है । कपिल मुनि ने शंकर के ज्ञान को पूर्व दिशा में प्रसारित किया । उन्ही के नाम पर कपिलदेश का नाम पड़ा, जिसे हम आज कनाडा के नाम से जानते हैं ।

ऋषि कश्यप

ऋषि कश्यप[7] के पिता ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि थे । इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है । बृहदारण्यक उपनिषद के अंत में सूचीबद्ध अन्य सप्तर्षियों के साथ, कश्यप सबसे प्राचीन और सम्मानित ऋषि हैं । एक मान्यता के अनुसार, श्री कृष्ण के पिता वसुदेव को कश्यप का अवतार माना जाता हैं ।

ऋषि व्यास

वेद व्यास[8], जिन्हें कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है, ने औपचारिक रूप से चार वेदों का संकलन किया । उन्होंने वेदांत दर्शन के सबसे पुराने ब्रह्मसूत्र की रचना की । व्यास और उनके शिष्य रोमहर्षण सबसे पहले इतिहासकार थे, जिन्होंने इतिहास और वंशावली के औपचारिक लेखन की शुरुआत की ।

पौराणिक अध्धयनकर्ताओं द्वारा की गई सबसे बड़ी गलतियों में से एक ऋग्वैदिक युग के वेद व्यास को महाभारत के व्यास के रूप में पहचानना है ।


संदर्भ

  1. Isha Foundation. Adiyogi. https://isha.sadhguru.org/yoga/history-of-yoga/the-first-yogi-adiyogi
  2. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. सप्तर्षि. https://hi.wikipedia.org/wiki/सप्तर्षि
  3. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि अंगिरस. https://hi.wikipedia.org/wiki/अंगिरा
  4. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि गौतम. https://hi.wikipedia.org/wiki/महर्षि_गौतम
  5. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि अत्रि. https://hi.wikipedia.org/wiki/अत्रि
  6. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि कपिल. https://hi.wikipedia.org/wiki/कपिल
  7. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि कश्यप. https://hi.wikipedia.org/wiki/कश्यप
  8. विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोश. महर्षि वेदव्यास. https://hi.wikipedia.org/wiki/वेदव्यास