cKlear शब्दार्थ
अस्तित्व
योग शास्त्र

पृष्ठभूमि

यह मानव शरीर इस पृथ्वी पर सबसे परिष्कृत यन्त्र है । सभी खोज और आविष्कार इसी मानव शरीर द्वारा ही संभव हुए हैं । सभी कृत्यों का स्रोत होने के बावजूद हम में से ज्यादातर लोग इस यन्त्र को बिना ठीक से समझे ही इसे इस्तेमाल करते हैं । हममें से ज्यादातर लोग इस यन्त्र को एक अभिन्न इकाई के रूप में देखते हैं और इसे मैं के रूप में संदर्भित करते हैं । हम कहते हैं कि मैं, एक इकाई के रूप में, सभी क्रियाओं और उनके परिणामों के लिए जिम्मेदार हूँ ।

यह ऐसा ही है जैसे हम किसी संगठन को उसके विभागों के कार्यों और व्यवहार को बहुत गहराई से समझे बिना चलाने की कोशिश करें । किसी भी उपलब्धि या असफलता को हम उस संपूर्ण संगठन की उपलब्धि या असफलता समझें । इस स्थिति में हम पूरे संगठन पर कार्यवाही करके किसी विफलता को दूर करने का प्रयास करेंगे, जो हम सभी जानते हैं कि यह बहुत प्रभावी नहीं होगा । वास्तव में हम जितना गहराई से संगठन के अंगों को समझेंगे, हमारी सुधारात्मक कार्रवाई उतनी ही सफल होगी ।

हमारे अस्तित्व के विभिन्न आयाम हैं । इन आयामों के बीच जितना प्रभावी समन्वय होगा, हम उतने ही सफल होंगे । परन्तु ये देखना आवश्यक है कि ऐसा होता है क्या । उदाहरण स्वरुप हम सभी जानते हैं कि हम मनुष्य बुद्धिजीवी हैं; परन्तु, केवल हममें से कुछ ही लोग मन और बुद्धि के बीच के अंतर को सही रूप में जानते हैं ।

अस्तित्व

हमारे अस्तित्व के दो मूल आयाम होते हैं - एक प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष स्वरुप को हम अपनी पांच इन्द्रियों से जान सकते हैं । अप्रत्यक्ष स्वरुप को जानने की प्रक्रिया को अध्यात्म कहते हैं । अध्यात्म शब्द दो शब्दों से बना है, आध्य यानि अध्यन, और आत्म यानि मेरा अप्रत्यक्ष स्वरुप । दुसरे शब्दों में कहें तो अपने अप्रत्यक्ष स्वरुप के अध्यन को अध्यात्म कहते हैं ।

आज की तेज भागती जीवनशैली में हममें से कई लोगों ने तनाव का अनुभव किया होगा । हममें से बहुत ने यह भी देखा होगा कि जब हमारा मन तनावग्रस्त होता है तो हमारी कार्यक्षमता कम हो जाती है । दूसरी ओर, जब हम शांत होते हैं, तो हमारी कार्य करने की क्षमता बहुत अधिक होती है ।

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने मन को कैसे शांत रक्खें, इस प्रश्न ने आदिकाल से मनुष्यों को परेशान किया है । विभिन्न संस्कृतियों ने इस मुद्दे को अपने तरीकों से संबोधित करने का प्रयास किया है । पाश्चात्य सभ्यताओं ने मूल रूप से मन को प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा नियंत्रित करने का प्रयास किया है । दूसरी और वैदिक सभ्यताओं ने मन को गहराई से समझा और इसपर अंकुश रकने के अभूतपूर्व तरीके विकसित किये, जिनके अभ्यास से हमने हजारों वर्षों से सफल परिणाम प्राप्त किये हैं । यह आध्यात्मिक ज्ञान भारत देश की इस विश्व को दी गई एक बहुत अनोखी देन है ।

योग शास्त्र

योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ या संघ । हमारे अस्तित्व के विभिन्न अंगों को समन्वित रूप से कार्यरत करना ही योग है । हमारे अस्तित्व के इन आयामों को प्रभावी ढंग से समझने और उपयोग करने के लिए वैदिक ज्ञान में विभिन्न मार्ग बताए गए हैं । अलग-अलग योग के इन मार्गों के अपने अपने गुण हैं । अपनी प्रकृति के अनुसार हम कोई सा भी मार्ग चुन सकते हैं ।

मोटे तौर पर योग के चार मार्ग बताये गए हैं - सांख्य योग (या तर्क शास्त्र), कर्म योग, भक्ति योग, और ज्ञान योग


संदर्भ

  1. Ved Puran, Free PDF Download. वेद पुराण. https://vedpuran.net/download-all-ved-and-puran-pdf-hindi-free/