इतिहास
पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण[1] के विकास के तीन अलग-अलग चरणों का स्पष्ट संकेत दिया है । छंद (वैदिक संस्कृत), संक्रमण काल की संस्कृत, और भाषा (लौकिक संस्कृत) ।
छंद की संस्कृत ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की वैदिक भाषा थी । छंद संस्कृत के काल में व्याकरण संधि के नियमों और संदर्भ-मुक्त व्याकरण तक ही सीमित था । अथर्ववेद के कुछ सूक्तों की भाषा छंद संस्कृत और लौकिक संस्कृत के संक्रमण काल की थी । सभी ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद लगभग १०००० - ७५०० BCE पूर्व के संक्रमण काल में लिखे गए हैं । १०००० BCE पूर्व से ८००० BCE पूर्व की अवधि के दौरान संस्कृत व्याकरण एक उन्नत चरण तक विकसित हुआ । परिणामस्वरूप, भाषा या लौकिक संस्कृत लगभग ७५०० - ७००० BCE पूर्व अस्तित्व में आई । इस प्रकार, सूत्र शैली या लौकिक अनुष्टुप मीटर में लिखे गए सभी ग्रंथों की तिथि ७५०० BCE पूर्व के बाद होनी चाहिए ।
संस्कृत
संस्कृत भाषा का इतिहास बहुत पुराना है । ये एक बहुत वैज्ञानिक भाषा है । इस भाषा को सही मायने में जानने के लिए इसकी वर्णमाला और व्याकरण को जानना बहुत जरूरी है ।
संस्कृत का हर शब्द तीन भागों से मिलकर बनता है। इसका बीच का भाग धातु कहलाता है, जो शब्द का अर्थ बताता है । पहला भाग उपसर्ग कहलाता है, जो शब्द के अर्थ में शंशोधन करता है । इसका आखरी भाग प्रत्यया कहलाता है, जो शब्द के सन्दर्भ को प्रदर्शित करता है ।
संस्कृत व्याकरण में केवल दो प्रकार के शब्द होते हैं, प्रत्येक में तीन आयाम होते हैं - संज्ञा संबंधित और क्रिया संबंधित ।
संज्ञा संबंधित
| लिंग | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| पुर्लिंग | जिस शब्द में पुरुष जाति का बोध होता है | रामः, बालकः, सः |
| स्त्रीलिंग | जिस शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है | रमा, बालिका, सा |
| नपुंसकलिंग | जिस शब्द से अन्य जाति का बोध होता है | फलम्, गृहम, पुस्तकम, तत् |
| वचन | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| एकवचन | संख्या में एक | एकः बालक: क्रीडति |
| द्विवचन | संख्या में दो | द्वौ बालकौ क्रीडतः |
| बहुवचन | दो से अधिक | त्रयःबालकाः क्रीडन्ति |
| विभक्ति | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| कर्ता | ने | रामः गच्छति |
| कर्म | को | बालकः विद्यालयं गच्छति |
| करण | द्वारा | सः हस्तेन खादति |
| सम्प्रदान | के लिये | निर्धनाय धनं देयं |
| अपादान | से (अलगाव) | वृक्षात् पत्राणि पतन्ति |
| सम्बन्ध | का, की, के | रामः दशरथस्य पुत्रः आसीत् |
| अधिकरण | में, पे, पर | यस्य गृहे माता नास्ति |
क्रिया संबंधित
| लकार | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| लट् लकार | वर्तमान काल | श्यामः खेलति |
| लिट् लकार | जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो | रामः रावणं ममार |
| लुट् लकार | जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो | सः परश्वः विद्यालयं गन्ता |
| लृट् लकार | जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो | रामः इदं कार्यं करिष्यति |
| लेट् लकार | यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है | शृणवत्, शृण्वति |
| लोट् लकार | ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है | भवान् गच्छतु |
| लङ् लकार | आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो | भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् |
| लिङ् लकार | किसी को आशीर्वाद देना या किसी को विधि बताना | भवान् जीव्यात् |
| लुङ् लकार | सामान्य भूत काल जो कभी भी बीत चुका हो | अहं भोजनम् अभक्षत् |
| लृङ् लकार | ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो | यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् |
| वचन | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| एकवचन | संख्या में एक | एकः बालक: क्रीडति |
| द्विवचन | संख्या में दो | द्वौ बालकौ क्रीडतः |
| बहुवचन | दो से अधिक | त्रयःबालकाः क्रीडन्ति |
| पुरुष | विवरण | उदाहरण |
|---|---|---|
| प्रथम / अन्य पुरुष | मैं और तुम को छोड़कर सभी नामपद संज्ञाएँ प्रथम पुरुष में आती हैं | सः, तौ, ते |
| मध्यम पुरुष | जिससे बात की जाती है, उसे मध्यम पुरुष कहते है | त्वम्, युवाम्, युयम् |
| उत्तम पुरुष | बात करने वाला स्वयं उत्तम पुरुष होता है | अहम्, आवाम्, वयम् |
संदर्भ
- The Chronology of India, Vedveer Arya. Manu to Mahabharata, Page 206. https://dokumen.pub/the-chronology-of-india-from-manu-to-mahabharata