पृष्ठभूमि
cKlear (सी-क्लीयर) का मतलब है प्रत्यक्ष ज्ञान या प्रज्ञा । इस वेबसाइट के माध्यम से हम भारत के इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, और आध्यात्मिक ज्ञान के कुछ विशेष पहलुओं को प्रस्तुत कर रहे हैं ।
हमारा मानना है कि पुराने समय में भारत के सर्वांगीण विकास की नींव उसकी संस्कृति और आध्यात्मिक ज्ञान थे ।
- पहले लोगों को विज्ञान द्वारा बाहरी और अध्यात्म द्वारा आंतरिक दोनों दुनियाओं का ज्ञान प्राप्त था । पिछली कुछ सदियों में हमने इस आंतरिक दुनिया के ज्ञान को खो दिया और इस सबसे परिष्कृत मशीन, जिसे हम मानव कहते है, को पूर्णतयः समझे बिना ही इसका उपयोग करना शुरू कर दिया । बुद्ध ने कहा है कि एक हजार लड़ाई जीतने से बेहतर है कि तुम खुद को जीत लो; फिर जीत तुम्हारी है, इसे तुम से कोई नहीं छीन सकता ।
- आध्यात्मिक ज्ञान के साथ हम अपनी संस्कृति, जिसमें हमारा इतिहास और सभ्यता समाहित हैं, को भी भूल गए । हमने ये जाना ही नहीं कि हमारे पूर्वजों ने विभिन्न क्षेत्रों में इस विश्व का नेतृत्व किया था और मानने लगे कि हम विश्व का अनुसरण करने के लिए ही बने हैं । हम भूल गए कि अपनी विरासत पर गर्व ही हमारी सफलता की कुंजी है । बुद्ध ने कहा है कि तुम अपने विचारों से आकार लेते हो; जैसा तुम सोचते हैं, वैसे हो जाते हो।
हमें अपने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में आध्यात्मिक ज्ञान से बहुत लाभ हुआ । जब हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होता है तो हममें कुछ बड़ा करने की इच्छा पैदा होती है । हमें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा जब हम अपने आप को अच्छी तरहं से समझने लगते हैं, तो हम अपने व्यावसायिक संगठन की ताकत व कमज़ोरियों को भी आसानी से देख पाते हैं; हमें अपने बाज़ारों के अवसर और खतरे सही समय पर और साफ साफ दिखने लगते हैं । ये सभी बातें किसी भी व्यवसाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं ।
आज भारत अपने अतीत के वर्चस्व को वापस पाने के लिए आगे बढ़ रहा है । हमें लगता है कि हमारे उद्यमी और नेता, जो देश की आर्थिक वृद्धि को गति दे रहे हैं, इस देश के अतीत से सीखेंगे । उनका गौरव उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा । हमें खुशी होगी अगर हम कुछ लोगों को भी उनकी इस संस्कृति को पेहचानने और आध्यात्मिक ज्ञान को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, ताकि उन्हें भी भारत के इस विशेष ज्ञान का लाभ मिल सके ।
सारांश
ऐतिहासिक घटनाओं की दृष्टि से हमने समय को तीन भागों में बांटा है । आदिकालीन युग, कालातीत से लगभग ९००० BCE तक की ऐतिहासिक घटनाओं को प्रस्तुत करता है । मध्यकालीन युग, लगभग ९००० BCE से १ BCE तक की घटनाओं का वर्णन करता है । और नवकालीन युग, १ CE से वर्तमान समय तक की घटनाओं को दर्शाता है ।
आदिकालीन युग
हमारी सभ्यता में बाहर की और अपने भीतर की दुनिया का अध्ययन गहराई से जुड़ा हुआ था । वास्तव में इनको एक ही घोषित किया गया था - यत पिंडे, तत ब्रहमांडे । अनादिकालीन युग में हमने विज्ञान के कुछ मूलभूत प्रश्नों के उत्तरों (जो वैदिक ज्ञान का हिस्सा हैं) को प्रस्तुत किया है, जैसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई, इसका विकास कैसे हुआ, यह कितना बड़ा है, आगे इसका विकास कैसे होगा, आदि ।
ऐसा माना जाता है कि विज्ञान भैरव सबसे पुराने ज्ञान स्रोतों में से एक है । यह भगवान शंकर (जिनहें आदि योगी भी कहा जाता है) द्वारा अपनी पत्नी पार्वती को प्रस्तुत की गई ११२ ध्यान तकनीकों का संग्रह है । यह पूर्वकालीन युग की शुरुआत का उल्लेख करता है । भगवान शंकर ने समाज के आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक ढांचे और उनके कामकाज के तरीकों को परिभाषित किया । यह ज्ञान उनके द्वारा अपने सात शिष्यों (जिन्हें हम सप्त ऋषियों के नाम से जानते है) को हस्तांतरित किया गया । शेष पूर्वकालीन युग में यह ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा द्वारा समस्त विश्व में पहुँचाया गया ।
पुरातन युग के दौरान वैदिक ज्ञान विभिन्न क्षेत्रों में विकसित हुआ । पुरातन युग के अंत तक शोधकर्ताओं ने पाया कि वही वैदिक ज्ञान बार बार प्रकट हो रहा है, इसलिए उन्होंने इसे आध्यात्मिक ज्ञान का अंत (वेदांत) घोषित कर दिया ।
मध्यकालीन युग
मध्यकालीन युग के पांच भाग हैं - सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलि युग और ध्यान युग । इन युगों में वैदिक ज्ञान को पूरे देश में समझा गया, अभ्यास किया गया, और इसका विस्तार हुआ ।
कलियुग की शुरुआत तक लगभग ६५ पुराण, १०८ उपनिषद, योग की १८०० विभिन्न तकनीकें और कई अन्य ज्ञान स्रोत उपलब्ध थे । कलियुग के अंत तक भारत ज्ञान और समृद्धि के शिखर पर था । हमारे पास सुव्यवस्थित शिक्षा प्रणाली थी जिसमें कई विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय, गुरुकुल, और पाठशालायें थे । हमारा कारोबार पूरे विश्व के साथ होता था । दुनिया के कुल व्यापर का ३२.९ प्रतिशत हिस्सा भारत के पास था ।
ध्यान युग के मध्य में, ऋषियों ने इस विस्त्रित ज्ञान को एकत्रित करना शुरू कर दिया । ऋषि व्यास ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद जैसे चार वेदों में ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया । महर्षि पतंजलि ने विभिन्न योग तकनीकों को अष्टांग योग में समेकित किया । उस समय का समाज बहुत समृद्ध था, जिसके पास सुविधा की सभी वस्तुएं उपलब्ध थीं, परन्तु मानसिक शांति नहीं थी । बुद्ध, महावीर जैसे विभिन्न प्रबुद्ध आचार्यों ने वैदिक ज्ञान को फिर से पुनर्जीवित किया और समाज को शांति का पथ दिखाया ।
नवकालीन युग
चूँकि आध्यात्मिक ज्ञान को धारण करना कठिन था, इसलिए ऐसा ज्ञान एक महान गुरु द्वारा पुनर्जीवित करने के हर ४०० - ५०० वर्षों में लुप्त हो जाता था । सांकेतिक युग के दौरान शोधकर्ताओं ने इस ज्ञान को कहानियों के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया, ताकि इसकी अवधारण लंबी हो ।
जैसे-जैसे ज्ञान फैलता गया वैसे-वैसे भक्ति युग में कई भक्ति मार्ग गुरुओं का जन्म हुआ, जिन्होंने लोगों के मन को भक्ति की ओर झुकाया ।
भारतीय ज्ञान और समृद्धि ने मध्य-पूर्व और पश्चिम के विभिन्न आक्रमणकारियों को आकर्षित किया । माध्यमिक युग ज्यादातर विदेशी आक्रमणकारियों के आगमन और हमारी शिक्षा प्रणाली, समाज और व्यापार पर उनके प्रभावों के बारे में बात करता है ।
अंत में हमने स्वराज के बाद, आधुनिक युग में वैश्विक शिक्षा और अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति फिर से हासिल करने के लिए देश द्वारा किए गए प्रयासों को प्रस्तुत किया है ।